मनीष कुमार, पांवटा साहिब
पांवटा में खनन माफिया की जड़ें बरगद के पेड़ से भी अधिक गहराई तक पहुँच चुकी हैं। अवैध खनन गिरोह के हौंसले इतने बुलंद हैं कि रात तो दूर, दिन-दिहाड़े ही मोडिफाइड ट्रैक्टर-ट्रॉलियाँ लेकर यमुना की सहायक नदी ‘बाता खड्ड’ का सीना छलनी करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। यह हाल तब है जब प्रदेश इसी वर्ष मानसून में भीषण जल प्रलय का दर्द झेल चुका है, जब अत्यधिक वर्षा, भूस्खलन और तबाही ने हजारों परिवारों को सड़क पर ला खड़ा किया है। इसके बावजूद खनन माफिया न तो प्रकृति की चेतावनियों से सबक ले रहा है, न ही प्रशासन के डंडे से भयभीत दिखाई देता है।


गत सप्ताह पुलिस ने क्षेत्र में डीएसपी (मुख्यालय) रमाकांत ठाकुर के नेतृत्व में एक दल ने 29-30 अक्टूबर की मध्यरात्रि विशेष अभियान चलाया। इस अभियान के दौरान 24 डंपरो का चालान किया गया और इनमें से 23 को ज़ब्त कर लिया गया था।
बहुत असंमंजस की बात है कि क्षेत्र में समय-समय पर प्रशासन एवं खनन अधिकारी अवैध गतिविधियों पर शिकंजा कसते हुए चालान काटते हैं, मशीनरी जब्त करते हैं परंतु खनन माफिया कुछ ही दिनों में और अधिक संगठित रूप से दोबारा सक्रिय हो उठता है। ट्रैक्टर-ट्रॉलियों में क्षमता से तीन-चार गुना अधिक खनिज सामग्री लोड कर बिना नंबर प्लेट या फर्जी नंबर की आड़ में दौड़ते ये वाहन न सिर्फ सरकारी राजस्व को नुकसान पहुँचा रहे हैं, बल्कि पूरे क्षेत्र की पारिस्थितिकी को भी बर्बादी की कगार पर धकेल रहे हैं।
हाल ही में केदारपुर में खनन वर्चस्व को लेकर दो गुटों में खूनी संघर्ष भी सामने आया, जिसमें अवैध खनन से जुड़े विवाद में एक व्यक्ति को कथित तौर पर स्कॉर्पियो से कुचल कर बेरहमी से मौत के घाट उतार दिया गया। इस घटना ने यह साफ कर दिया कि यह अब महज अवैध खनन नहीं, बल्कि एक समानांतर सत्ता तंत्र बन चुका है—जहाँ दबंगई, प्रतिस्पर्धा, हिंसा और आर्थिक लालच हर सीमा लांघ रहे हैं।
पर्यावरणीय दृष्टि से यह स्थिति बेहद चिंताजनक है। नदियों के प्राकृतिक प्रवाह से छेड़छाड़ भविष्य में कटाव, बाढ़, जलस्तर में गिरावट और पारिस्थितिकी असंतुलन जैसी गंभीर समस्याओं को जन्म दे सकती है। दूसरी ओर, बिना मानकों के चल रहे ओवरलोड वाहनों के कारण स्थानीय सड़कों की संरचना भी बुरी तरह प्रभावित हो रही है, जिससे भविष्य में परिवहन और सुरक्षा संबंधी जोखिम बढ़ने की आशंका है।
यह रिपोर्ट किसी व्यक्ति, समूह या स्थानीय समुदाय के बयान पर आधारित नहीं, बल्कि मौके से जुटाए गए दृश्य प्रमाणों और प्रत्यक्ष अवलोकन पर आधारित है। रिपोर्ट का उद्देश्य केवल तथ्यों को उजागर करना और शासन-प्रशासन का ध्यान इस गंभीर समस्या की ओर आकर्षित करना है, ताकि क्षेत्र के प्राकृतिक संसाधनों, पर्यावरण और सार्वजनिक हित की रक्षा सुनिश्चित की जा सके।
गौरतलब यह है कि पांवटा घाटी, ज़िला सिरमौर में भू-जल स्तर लगातार गिर रहा है, जो पर्यावरण और जल सुरक्षा के लिए चिंताजनक संकेत है। हाल के आँकड़ों के अनुसार, मई 2025 की तुलना 2015–2024 के औसत से करने पर पांवटा घाटी में भू-जल स्तर 2 से 4 मीटर तक नीचे गिरा है। इससे पहले, नवंबर 2012–2021 से नवंबर 2022 के दशक में भी घाटी में 2 से 4 मीटर की गिरावट दर्ज की गई थी। वहीं, यदि पूरे सिरमौर ज़िले की बात करें तो एक विश्लेषण अवधि में भू-जल स्तर में सर्वाधिक गिरावट 18.29 मीटर तक दर्ज की गई, जो स्थिति की गंभीरता को दर्शाता है।
आवश्यक है कि चालान की प्रक्रिया से आगे बढ़कर स्थायी निगरानी, सख्त प्रवर्तन और दोषियों पर दीर्घकालिक कानूनी कार्रवाई की जाए, ताकि पांवटा में अवैध खनन के इस लगातार बढ़ते खतरे को रोका जा सके।
हालाँकि प्रशासन अपने स्तर पर कार्य कर रहा है, परन्तु बड़ा सवाल यह है कि क्या कार्रवाई केवल कागज़ों और चालानों तक सीमित रहेगी, या जमीन पर खनन के इस सिंडिकेट को जड़ से उखाड़ा जाएगा? क्योंकि बात अब केवल रेत-बजरी की नहीं, बल्कि पर्यावरण, कानून-व्यवस्था और जनजीवन की सुरक्षा की है—जिसे बचाने के लिए त्वरित और कठोर कदम उठाना वक्त की सबसे बड़ी माँग बन चुका है।

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